
महाभारत के युद्ध के पश्चात अर्जुन समेत पांडवों को यह लगने लगता है कि वह लोग विश्व के सर्वोच्च योद्धा बन चुके हैं तथा उन्हें विश्व में कोई भी पराजित नहीं कर सकता है।
भगवान श्रीकृष्ण इन सभी बातों को समझ रहे थे तभी उन्होंने निर्णय लिया कि क्यों ना पांडवों का साक्षात्कार बर्बरीक से कराया जाए ताकि उनके घमंड का नाश हो सके।
आइए जानते हैं कौन था बर्बरीक और कैसे हुआ पांडवों के घमंड का नाश??
बर्बरीक घटोत्कच (पिता) तथा मौवती (माता) के पुत्र थे घटोत्कच के पिता भीम थे अर्थात बर्बरीक भीम का पोता था युद्ध के प्रारंभ में ही जब बर्बरीक ने युद्ध लड़ने की इच्छा व्यक्त की तो श्रीकृष्ण ने उन्हें रोक दिया तथा बताया कि बर्बरीक ने कमजोर निर्बल पक्ष से युद्ध लड़ने का निर्णय / प्रण लिया है जिसे युद्ध का संतुलन बिगड़ जाएगा।
अतः समाज धर्म तथा व्यवस्था की भलाई के लिए बर्बरीक को अपने प्राणों का बलिदान देना होगा आपसी सहमति तथा विचार विमर्श के बाद बर्बरीक बलिदान के लिए राजी हो गया तब भगवान श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन से बर्बरीक का गला काट दिया।
इसके बाद बर्बरीक ने इच्छा व्यक्त की कि वह भी महाभारत के संपूर्ण युद्ध को अपनी आंखों से देखना चाहता है तो श्री कृष्ण ने उसके सिर को एक पर्वत के खंड से जोड़ दिया।
तत्पश्चात श्रीकृष्ण ने बोला कि उसका सिर युद्ध समाप्त तक जीवित रहेगा। और वह संपूर्ण युद्ध को अपनी आंखों से देख सकेगा। वह पर्वत जहां पर बर्बरीक के सिर को जोड़ा गया उसे खाटू श्याम का नाम दिया गया।
आइए जानते हैं कि बर्बरीक ने कैसे तोड़ा पांडवों का घमंड??
जब अश्वत्थामा की मृत्यु हुई तो अश्वत्थामा की मणि को युधिष्ठिर ने अपने मुकुट पर धारण किया यह सब देख कर बर्बरीक जोर जोर से हंसने लगता है यह देखकर पांडव और श्री कृष्ण आश्चर्य में पड़ जाते हैं।
और वह हंसी का कारण जानने के लिए बर्बरीक के पास जाते हैं और बारबारिक से पूछते हैं कि वह क्यों हंस रहा है?? इस पर बर्बरीक कहता है कि मनुष्य दिखावे तथा झूठे मान सम्मान के लिए ना जाने क्या-क्या करता रहता है।
यह सुनकर धर्मराज तुरंत समझ जाते हैं और उन्हें अपनी भूल का एहसास होता है इसी प्रकार बातचीत आगे बढ़ती है और पांडव पूछते हैं कि युद्ध में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किसका रहा?
इस पर बर्बरीक पुनः और जोर जोर से हंसने लगता है और कहता है कि उसने किसी को भी सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए नहीं देखा यह सुनकर पांडव क्रोधित होकर बोलते हैं कि बारबरी उनका अपमान कर रहा है।
तब बर्बरीक बोलता है कि वह उनका अपमान नहीं कर रहा है बल्कि उसने जो देखा वह सत्य बता रहा है तब पांडव प्रश्न पूछते हैं कि उसने आखिर ऐसा क्या देखा?
तब बर्बरीक कहता है कि उसने हर जगह श्रीकृष्ण को देखा। श्रीकृष्ण ने ही बड़े-बड़े योद्धाओं का वध किया चाहे भीष्म पितामह का वध हो, जयद्रथ का वध हो, दानवीर कर्ण का वध हो, या फिर द्रोणाचार्य का वध हो सभी जगह श्री कृष्ण तथा उनको सुदर्शन चक्र ही दिख रहा था।
अंत में पांडवों को अपनी भूल का एहसास होता है तथा उनके घमंड का विनाश हो जाता है। अतः हमें इस कहानी से यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी अपनी सफलता या गौरव का घमंड नहीं करना चाहिए।