
श्री दुर्गा सप्तशती में आज हम आपको एक पाठ के बारे में बताने वाले हैं, जिसको करने से सभी तरह की समस्याएं दूर हो जाती है। इस पाठ को जब आप पढ़ेंगे ओर इसके फ़ायदे मिलेंगे तब आपको किसी अन्य पाठ की आवश्यकता होगी ही नहीं। है..सिद्धकुंजिकास्तोत्रम्। समस्त बाधाओं को शांत करने, शत्रु दमन, ऋण मुक्ति, करियर, विद्या, शारीरिक और मानसिक सुख प्राप्त करना चाहते हैं तो सिद्धकुंजिकास्तोत्र का यह पाठ अपने जीवन मे अवश्य करें। श्री दुर्गा सप्तशती में यह अध्याय सम्मिलित है। यदि आपके पास कम है तो आप इसका पाठ करके भी श्रीदुर्गा सप्तशती के पूरा पाठ जैसा ही पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। नाम के अनुरूप यह सिद्ध कुंजिका है। जब किसी प्रश्न का उत्तर नहीं मिल रहा है आपको तो आप इस , समस्या का समाधान नहीं हो रहा है, तो सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करिये ।
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र की महिमा
भगवान शंकर ने बताया हैं कि सिद्धकुंजिका स्तोत्र का पाठ करने वाले को देवी कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, सूक्त, ध्यान, न्यास और यहां तक कि अर्चन भी आवश्यक नहीं होती हैं। केवल कुंजिका के पाठ मात्र से दुर्गा पाठ का फल प्राप्त हो जायेगा।
क्यों है सिद्ध
इसके पाठ मात्र से मारण, मोहन, वशीकरण, स्तम्भन और उच्चाटन आदि उद्देश्यों की एक साथ पूर्ति हो गई है। इसमें स्वर व्यंजन की ध्वनि भी है। योग और प्राणायाम है।
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र को अत्यंत सावधानी पूर्वक से करना चाहिए।
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥ ( सामान्य रूप से हम इस मंत्र का पाठ करते हैं लेकिन संपूर्ण मंत्र केवल सिद्ध कुंजिका स्तोत्र में ही है)
संपूर्ण मंत्र यह है
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ऊं ग्लौं हुं क्लीं जूं स: ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।।
प्रतिदिन इस पूजा को करने ओर में इसको शामिल कर सकते हैं। लेकिन यदि अनुष्ठान के रूप में या किसी इच्छाप्राप्ति के लिए कर रहे हैं तो आपको कुछ सावधानी रखनी पड़ेगी।
- संकल्प: सिद्ध कुंजिका पढ़ने से पहले हाथ में अक्षत, पुष्प और जल लेकर संकल्प करें। मन ही मन देवी मां को अपनी इच्छा कहें।
- जितने पाठ एक साथ ( 1, 2, 3, 5. 7. 11) कर सकें, उसका संकल्प करें। अनुष्ठान के दौरान माला समान रखें। ।
- सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के अनुष्ठान के दौरान जमीन पर रखा करें।
- प्रतिदिन अनार का भोग चढ़ाए। लाल पुष्प देवी भगवती को डाले ।
- सिद्ध कुंजिका स्तोत्र में दशों महाविद्या, नौ देवियों की आराधना है।
- रात्रि 9 बजे करें तो अत्युत्तम।
- रात को 9 से 11.30 बजे तक का ही समय सही होता हैं।
आसन
लाल आसन पर बैठकर पाठ करें
दीपक
घी का दीपक दायें तरफ और सरसो के तेल का दीपक बाएं तरफ रखें। ओर दोनों दीपक जलाएं
इच्छा की मंत्र
1.विद्या प्राप्ति के लिए….पांच पाठ ( अक्षत लेकर अपने ऊपर से तीन बार घुमाकर किताबों में रख दें)
- यश-कीर्ति के लिए…. पांच पाठ ( देवी को चढ़ाया हुआ लाल पुष्प लेकर सेफ आदि में रखे।)
- धन प्राप्ति के लिए….9 पाठ ( सफेद तिल से अग्यारी करें)
4.मुकदमे से मुक्ति के लिए…सात पाठ ( पाठ के बाद एक नींबू काट दें। तोह बेहतर होगा।)
- ऋण मुक्ति के लिए….सात पाठ ( जौं की 21 आहुतियां देते हुए अग्यारी करें।
- घर की सुख-शांति के लिए…तीन पाठ ( मीठा पान देवी को अर्पण करें)
7.स्वास्थ्यके लिए…तीन पाठ ( देवी को नींबू चढाएं और फिर उसका इस्तेमाल कर लें)
8.शत्रु से रक्षा के लिए…, 3, 7 या 11 पाठ ( लगातार पाठ करने से मुक्ति मिलती है।)
- रोजगार के लिए…3,5, 7 और 11 ( एच्छिक) ( एक सुपारी देवी को चढाकर अपने पास रख लें इसे ।)
10.सर्वबाधा शांति- तीन पाठ ( लोंग के तीन जोड़े अग्यारी पर चढ़ाएं या देवी जी के आगे तीन जोड़े लोंग के रखकर फिर उठा लें और अन्य खाने या चाय में इस्तेमाल कर लें।
सिद्धकुंजिकास्तोत्रम्
शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः भवेत् ॥१॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् ।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ॥२॥
कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् ।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥३॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति ।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम् ।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥४॥
अथ मन्त्रः
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा
इति मन्त्रः॥
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ॥१॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन ॥२॥
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे ।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका ॥३॥
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते ।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी ॥४॥
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण ॥५॥
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी ।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु ॥६॥
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी ।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ॥७॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ॥८॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे ॥
इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे ।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ॥
यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत् ।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ॥
इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती
संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम् ॥