
भगवान विष्णु जगत के पालनहार कहे जाते हैं। बैकुंठ धाम में वे निवास करते हैं। राक्षसों के वध के लिए उन्होंने अलग-अलग समय पर अवतार लिये हैं। ऐसे में यदि आपको बताएं कि बैकुंठ धाम की रक्षा की जिम्मेवारी संभालने वाले रक्षक राक्षस बन गए थे तो इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी? यहां हम आपको इसी के बारे में बता रहे हैं।
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ब्रह्मा के मानस पुत्रों का उपहास

सनत-सनकादि ब्रह्माजी के मानस पुत्र हैं। वे दिगंबर साधु हैं। उन्हें भगवान विष्णु का दर्शन करना था। इसके लिए वे बैकुंठधाम पहुंच गए। द्वार पर भगवान विष्णु के दो पार्षद जय और विजय रखवाली कर रहे थे। इन दोनों को देखकर वे हंस पड़े। उन्होंने उनसे पूछ लिया कि ऐसे नंग-धड़ंग यहां कैसे पहुंच गए?
अनुरोध करने पर भी जब दोनों रक्षकों ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया तो उन्हें सनत-सनकादि ने शाप दे दिया कि भगवान के साथ रहकर भी उनके साथ राक्षसों सा व्यवहार करने के कारण अगले जन्म में वे दोनों राक्षस कुल में जन्म लेंगे।

भगवान विष्णु का आश्वासन
विवाद के बारे में जानकारी हुई तो भगवान विष्णु बाहर आ गए। आदर के साथ उन्होंने सनत-सनकादि को अंदर भेज दिया। जय-विजय दोनों द्वारपालों को उदास देख और शाप की बात जानकर उन्होंने उनसे कहा कि अगले जन्म में वे राक्षस कुल में जन्म जरूर लेंगे, पर उन्हें राक्षस योनी से मुक्ति भी उन्हीं के द्वारा मिलेगी।
यहां मिला अगला जन्म
अगले जन्म में जय और विजय कश्यप ऋषि की पत्नी दिति के गर्भ से जन्मे जो कि राक्षसों के कुल की माता थी। इस बार ये हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु के रूप में जन्मे और इन्होंने अपने अत्याचार से देवताओं तक को परेशान कर दिया। देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने विशाल वाराह का अवतार लिया।
हिरण्याक्ष की मुक्ति
हिरण्याक्ष का वाराह रूप वाले भगवान विष्णु से युद्ध हुआ। अंत में भगवान विष्णु ने हिरण्याक्ष को उठाकर ऐसे फेंका कि आकाश में चक्कर काटते हुए वह पृथ्वी पर आकर उन्हीं के पास गिर पड़ा। मरते वक्त उसे वाराह के रूप में भगवान विष्णु के दर्शन हो गए और उसे मुक्ति मिल गई।

मरणासन्न हिरण्याक्ष के अनुरोध पर भगवान विष्णु ने उसे बताया कि नरसिंह रूप में अवतार लेकर बे उसका भी उद्धार जरूर करेंगे। इस तरह से भगवान विष्णु के बैकुंठ धाम के रक्षक राक्षस बन गए थे और भगवान विष्णु ने उन्हें मुक्ति दिलाई थी।